पूर्व आइएएस अधिकारी और लोक संगीत के विशेषज्ञ विजय वर्मा को मिला संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड, सम्पूर्ण योगदान और स्कॉलरशिप वर्ग में यह सम्मान मि...
पूर्व आइएएस अधिकारी और लोक संगीत के विशेषज्ञ विजय वर्मा को मिला संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड, सम्पूर्ण योगदान और स्कॉलरशिप वर्ग में यह सम्मान मिला है
- जेकेके पहले महानिदेशक रहे, इनके पास पांच से छह हजार घंटे की म्यूजिक रिकॉर्डिंग्स मौजूद
जयपुर. 'संगीत का माहौल घर से ही मिला है, मां क्लासिकल और फिल्मी संगीत सीखा करती थी, वहीं से वो म्यूजिक मेरे कानों तक पहुचा करता था। नामचीन सिंगर्स और क्लासिकल सिंगर्स का म्यूजिक हमारे घर में हमेशा चलता रहता था। जब मेड़ता में पोस्टिंग हुई तो वहां फोक म्यूजिक से वास्ता हुआ। वहां से ट्राइबल एरिया डवलपमेंट कमिश्नर के पद पर उदयपुर भेजा गया। यहां आस-पास के जिलों में जाने का मौका मिला और वहां की फोक आर्ट से जुडऩे लगा। फोक म्यूजिक के प्रति इंटरेस्ट एेसे बढ़ा कि मैं कलाकारों के म्यूजिक को रिकॉर्ड करने अक्सर वहां पहुंच जाया करता था। रिकॉर्डिंग का मेरे पास एेसा रेयर कलेक्शन है, जो लगभग ५ से ६ हजार घंटे तक सुना जा सकता है।Ó यह कहना है, पूर्व आइएएस अधिकारी और लोक संगीत के विशेषज्ञ विजय वर्मा का। हालही में संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड से विजय वर्मा को सम्मानित किया गया। इन्हें सम्पूर्ण योगदान और स्कॉलरशिप वर्ग में यह सम्मान मिला है, इनके साथ राजस्थान से अनवर खान मांगणियार को लोक संगीत में यह अवॉर्ड मिला है।
अन्य राज्यों के म्यूजिक से की तुलना
वर्मा ने बताया कि राजस्थान के लोक कलाकारों से मिलने उनके घरों तक जाता था और उनकी रिकॉर्डिंग किया करता था। यहां के म्यूजिक पर सीड़ी भी बनाई। इसके बाद मैंने अन्य राज्यों का दौरा करना शुरू किया और वहां के फोक म्यूजिक के कलाकारों से मिलकर उनकी रिकॉर्डिंग्स करने लगा। इनमें जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, बिहार, गुजरात जैसे राज्य शामिल थे। इन राज्यों के म्यूजिक की हमारे राजस्थान के म्यूजिक से तुलना करता था। रिकॉर्डिंग्स को सुन-सुन कर ही अपनी समझ को बढ़ाई और फिर इस विषय पर किताब 'लोका अवलोकनÓ पब्लिश की। इसमें राजस्थान के विभिन्न अंचलों के लोक संगीत को जगह दी गई है।
लोक कलाकारों तक पहुंचे जेकेके
उन्होंने बताया कि जब जेकेके का भवन बन रहा था, तब मुझे यहां के महानिदेशक की जिम्मेदारी दी गई। चाल्र्स कोरिया भारत भवन के कॉन्सेप्ट पर यहां म्यूजियम को लेकर प्लान कर रहे थे, वे यहां कपड़े, आम्र्स, ज्वैलरी सहित कई विषयवस्तुओं को म्यूजियम के रूप में डिस्प्ले करने की योजना में थे। इस पर मेरा मतभेद था, मैंने इसे एक्टिव आर्ट सेंटर के रूप में डवलप किया। सबसे पहले क्षेत्रीय लोक संगीत के कार्यक्रम शुरू किए, कलाकारों के गांव में जाकर ही हम कार्यक्रम करवाते थे। आज लोक संगीत के साथ ज्यादती हो रही है, इसे शहरी मनोरंजन का साधन बना दिया है, जिससे गांव वाली कला खत्म हो रही है। मेरा मानना है कि क्यारी में फूल रहेंगे, तब ही गुलदान में फूल पहुंच सकते हैं। अब अफसोस होता है कि इस कार्यक्रम श्रंखला को आगे नहीं बढ़ाया गया। यहां तक की लोकरंग को भी बंद कर दिया गया, जहां देशभर की फोक आर्ट लोगों को नजर आती थी।
जेकेके की बनावट ही गलत
चाल्र्स ने जेकेके को नवग्रह वास्तु पुरुष मंडल के अंदाज में बनाया और यह जयपुर की बनावट से प्रेरित होना बताया जाता है। जबकि किसी भी गं्रथ में जयपुर को नवग्रह वास्तु पुरुष मंडल के अनुरुप बनाने का जिक्र भी नहीं है। शिल्पग्राम चाल्र्स की प्लानिंग में नहीं था। हमने एनसीसी से जमीन लेकर राजस्थान के लोक जीवन को प्रदर्शित करने के लिए शिल्पग्राम को बनवाया। वहां बनी झोपडि़यां आज भी राजस्थान के विभिन्न संभागों के जन-जीवन को बयां करती है।
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