पं. झाबरमल्ल शर्मा स्मृति व्याख्यानमाला जयपुर. आजकल पत्रकारिता पर दिए जाने वाले व्याख्यान नैराश्य पैदा करते हैं। जब हम बात करते हैं कि कितने...
पं. झाबरमल्ल शर्मा स्मृति व्याख्यानमाला
जयपुर. आजकल पत्रकारिता पर दिए जाने वाले व्याख्यान नैराश्य पैदा करते हैं। जब हम बात करते हैं कि कितने समाचार- पत्र और टीवी चैनल घुटनों पर आ गए हैं। जब उन्हें झुकने को कहा जाता है तो वे सूर्य नमस्कार करने लगते हैं। क्योंकि उन्हें पता है कि सूर्य कहां है। और कौन सा सूर्य अस्त हो गया है और कौन सा सूर्य चमक रहा है। न्यूज चैनल और समाचार-पत्रों के न्यूज रूम में विमर्श का स्थान बहुत कम रह गया है। सत्ता को सच बताने की बजाए वे इंतजार करते हैं कि सत्ता उन्हें बताए कि सच क्या है। उक्त विचार इंडियन एक्सप्रेस के चीफ एडिटर राज कमल झा ने व्यक्त किए।
राज कमल शनिवार को राजस्थान पत्रिका के झालाना स्थित कार्यालय के हॉल में 29वें पं. झाबरमल्ल शर्मा स्मृति व्याख्यान व सृजनात्मक साहित्य पुरस्कार समारोह को संबोधित कर रहे थे। इस मौके पर 2019 में श्रेष्ठ कविता व कहानी के लिए साहित्यकारों को सम्मानित किया। राजनीतिक, प्रशासनिक, न्यायिक सहित अन्य क्षेत्रों के प्रमुख लोगों की मौजूदगी में उन्होंने कहा कि रात 9 बजे प्राइम टाइम पर मुद्दों का इतना शोर मचता है कि म्यूट बटन दबाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है। मीडिया को दो भागों में रख सकते हैं, अस्तित्व बचाए रखने वाला और स्वतंत्र मीडिया। जब हम गौर से देखते हैं तो एक बड़ा विभेद है मीडिया में।
हम सब टीवी एंकर बन गए हैं
स्मार्टफोन के कारण हम सब टीवी एंकर बन गए हैं। ये लोकप्रियतावाद युग है। जब सरकारें बहुमत को ही लोकतंत्र का एकमात्र आधार मानती हैं। जनादेश की आड़ में सरकारें विरोध के स्वरों को सुनना भी नहीं चाहती हैं। संस्थाएं डांवाडोल हो रही हैं। कुछ संस्थाएं ही अपने वजूद को बचा पा रही हैं। इनमें मीडिया, न्यायपालिका और विश्वविद्यालय भी शामिल हैं।
जयपुर. आजकल पत्रकारिता पर दिए जाने वाले व्याख्यान नैराश्य पैदा करते हैं। जब हम बात करते हैं कि कितने समाचार- पत्र और टीवी चैनल घुटनों पर आ गए हैं। जब उन्हें झुकने को कहा जाता है तो वे सूर्य नमस्कार करने लगते हैं। क्योंकि उन्हें पता है कि सूर्य कहां है। और कौन सा सूर्य अस्त हो गया है और कौन सा सूर्य चमक रहा है। न्यूज चैनल और समाचार-पत्रों के न्यूज रूम में विमर्श का स्थान बहुत कम रह गया है। सत्ता को सच बताने की बजाए वे इंतजार करते हैं कि सत्ता उन्हें बताए कि सच क्या है। उक्त विचार इंडियन एक्सप्रेस के चीफ एडिटर राज कमल झा ने व्यक्त किए।
राज कमल शनिवार को राजस्थान पत्रिका के झालाना स्थित कार्यालय के हॉल में 29वें पं. झाबरमल्ल शर्मा स्मृति व्याख्यान व सृजनात्मक साहित्य पुरस्कार समारोह को संबोधित कर रहे थे। इस मौके पर 2019 में श्रेष्ठ कविता व कहानी के लिए साहित्यकारों को सम्मानित किया। राजनीतिक, प्रशासनिक, न्यायिक सहित अन्य क्षेत्रों के प्रमुख लोगों की मौजूदगी में उन्होंने कहा कि रात 9 बजे प्राइम टाइम पर मुद्दों का इतना शोर मचता है कि म्यूट बटन दबाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है। मीडिया को दो भागों में रख सकते हैं, अस्तित्व बचाए रखने वाला और स्वतंत्र मीडिया। जब हम गौर से देखते हैं तो एक बड़ा विभेद है मीडिया में।
हम सब टीवी एंकर बन गए हैं
स्मार्टफोन के कारण हम सब टीवी एंकर बन गए हैं। ये लोकप्रियतावाद युग है। जब सरकारें बहुमत को ही लोकतंत्र का एकमात्र आधार मानती हैं। जनादेश की आड़ में सरकारें विरोध के स्वरों को सुनना भी नहीं चाहती हैं। संस्थाएं डांवाडोल हो रही हैं। कुछ संस्थाएं ही अपने वजूद को बचा पा रही हैं। इनमें मीडिया, न्यायपालिका और विश्वविद्यालय भी शामिल हैं।
कलम के ये धनी हुए सम्मानित
समारोह में सृजनात्मक साहित्य पुरस्कारों के तहत कहानी में पहला पुरस्कार कोटा की लता शर्मा को कहानी 'सन्नाटाÓ और दूसरा पुरस्कार खरगोन (मध्यप्रदेश) के प्रदीप जिलवाने को कहानी 'चॉकलेट फ्रेंडÓ के लिए दिया गया। कविता में पहला पुरस्कार त्रिवेन्द्रम (केरल) की रति सक्सेना को और दूसरा पुरस्कार जयपुर की चित्रा भारद्वाज 'सुमनÓ को दिया गया। रति सक्सेना को कविता 'सिलेटÓ के लिए और चित्रा भारद्वाज 'सुमनÓ को कविता 'सफर की थकान से गुजरीी के लिए प्रदान किया गया। ये कहानी-कविताएं वर्ष 2019 में पत्रिका समूह के परिशिष्टों में प्रकाशित हुई थी।
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