#पोस्टमार्टम.... मुस्लिम युवा क्यों हुए उग्र? वास्तव में कौन है पूरे मामले का जिम्मेदार? और.... अब तक कार्यवाही क्यों नहीं हुई? ...
मुस्लिम युवा क्यों हुए उग्र?
वास्तव में कौन है पूरे मामले का जिम्मेदार?
और....
अब तक कार्यवाही क्यों नहीं हुई?
पहले 12वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की किताब में इस्लामी आतंकवाद जैसे शब्द इस्तेमाल करके सवाल पूछना, फिर संजीव प्रकाशन की संजीव पास बुक में इन सवालों के अनर्गल जवाब पेश करना और जवाब में ऐसी टिप्पणियां करना जिससे इस्लाम धर्म पूरी तरह आतंकवाद से जुड़ा प्रतीत हो। मामले की शुरूआत तो यहीं से हुई है, तो जिम्मेदार भी यह दोनों ही होने चाहिए। फिर मुस्लिम युवाओं के उग्र प्रदर्शन और उनकी गिरफ्तारी तक बात कैसे पहुंच गई?
दरअसल तीन दिन से चल रहे इस प्रकरण में संजीव प्रकाशन ने लिखित में माफी मांग ली और बात रफा—दफा करने की कोशिशें शुरू हो गईं। प्रकाशक के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं हुआ। ऐसे में राजस्थान मुस्लिम परिषद ने प्रकाशक के खिलाफ कार्यवाही और लिखित शिकायत देकर मामला दर्ज करने की मांग रखी। इसके लिए उन्होंने 16 मार्च को कोतवाली थाने पर धरना भी दिया। शाम के समय पुलिस ने लिखित शिकायत ली और एफआईआर दर्ज करने पर सहमति भी हो गई। लेकिन मामला तब बिगड़ा जब अगले दिन सुबह तक एफआईआर दर्ज नहीं की गई। बात जब समाज के लोगों तक पहुंची और भी युवा इकट्ठे हुए और चौड़ा रास्ता स्थित संजीव प्रकाशन के दफ्तर पर प्रदर्शन किया। इस दौरान मुस्लिम युवाओं ने पुलिस के खिलाफ भी नारेबाजी व प्रदर्शन किया। मामला बढ़ता देख पुलिस ने यूनुस चौपदार, नूूरुद्दीन व इकरामुददीन को गिरफ्तार किया। आखिर लालकोठी थाना पुलिस को शाम को एफआईआर दर्ज करनी पड़ी, यह एफआईआर कोतवाली थाने में एक दिन पहले दर्ज हो जाती तो शायद युवाओं की इतनी उग्रता सामने नहीं आती। खेर राजस्थान मुस्लिम परिषद के कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी की खबर पूरे राज्य में आग की तरह फेल गई है और कई जिलों से प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गईं। कोतवाली थाने में प्रकाशक के खिलाफ एफआईआर की मांग भी की जा रही है। जल्द ही ठोस कार्यवाही नहीं की गई तो हो सकता है राज्य स्तर पर आंदोलन की आग फेल जाए।
बात करते हैं कि पूरे मामले में जिम्मेदार कोन है? दरअसल यह एक सियासी खेल है। जिस पार्टी की सरकार राज्य में होती है, वह अपनी विचारधारा के अनुरूप कोर्स बदल देती है। पाठ्यपुस्तक मंडल की 12वीं कक्षा की जो किताब विवादों में आई है, दरअसल उसका प्रकाशन पिछली भाजपा सरकार में 2017 में ही हो चुका था। यानी विवाद या गलती तब से ही चली आ रही है। मौजूदा कांग्रेस सरकार की कमी यह रही कि उसके कार्यकाल में दो साल से यही गलती चली आ रही है। इस तरफ न तो सरकार ने, न विभाग ने, न लेक्चरर्स ने और न ही छात्रों ने ध्यान दिया। अब किसी की नजर में आया और मामला उछल पड़ा।
अब बात करते हैं कि जो विवादास्पद तथ्य किताबों में छपे, उसके पीछे कौन जिम्मेदार हैं? पाठ्यपुस्तक मंडल, संजीव पास बुक या लेखकगण? सबसे पहले यह समझना होगा कि गलती कहां हुई है। पाठ्यपुस्तक मंडल की ओर से प्रकाशित कोर्स की किताब राजनीति विज्ञान के खंड ब, तीसरी इकाई के तीसरे चैप्टर "आतंकवाद, राजनीति का अपराधीकरण व भ्र्ष्टाचार" में यह विवाद पैदा हुआ है। खास बात यह है कि इस पूरे चेप्टर में कहीं भी "इस्लामी आतंकवाद" शब्द का इस्तेमाल नहीं हुआ है, हालांकि आतंकवाद को धर्म व पंथ से जोड़ने का जिक्र किया गया है, लेकिन कहीं भी इस्लाम से इसे जोड़कर प्रस्तुत नहीं किया गया। लेकिन बड़ी गलती यह हुई कि चेप्टर के प्रश्नों में दो जगह इस्लामी आतंकवाद संबंधी प्रश्न पूछ लिए गए। बहुचयनात्मक प्रश्नों में एक प्रश्न है कि "इस्लामी आतंकवाद का निम्नलिखित में कौनसा उद्देश्य नहीं है?" इसी तरह लघुत्तरात्मक प्रश्नों में छठा प्रश्न है "इस्लामी आतंकवाद से आप क्या समझते हैं?" यानी पहली गलती पाठ्य पुस्तकमंडल व उसकी प्रकाशित कोर्स की किताब के लेखकों से हुई कि जब पूरे चैप्टर में इस्लामी आतंकवाद का जिक्र ही नहीं है तो ऐसे प्रश्नों का फितूर क्यों फैलाया गया? अब ढूंढो इस किताब के लेखकों बालूदान बारहठ, सरोज कुमारी, बंशीलाल जाखड़, सोहन लाल शर्मा, रमेश चंद्र शर्मा, महावीर प्रसाद और किताब संयोजक गवर्नमेंट कॉलेज जोधपुर के राजनीति विज्ञान के सह आचार्य डॉ.भंवर सिंह राठौड़ व पाठ्यक्रम समिति की संयोजक राजस्थान विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग की तत्कालीन एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. इनाक्षी चतुर्वेदी को। जिनकी देखरेख में विवाद की यह जाजम बिछाई गई।
अब बारी है यह जानने की कि संजीव प्रकाशन ने इस आग में घी डालने का काम कैसे किया? यह तो स्पष्ट है कि पाठ्यपुस्तक मंडल की प्रकाशित किताब में कहीं भी इस्लामी आतंकवाद का जिक्र नहीं किया, लेकिन उस किताब में इस्लामी आतंकवाद से जुड़े प्रश्न पूछे गए। संजीव प्रकाशन ने इन प्रश्नों के उत्तर मनगढंग तरीके से दे दिए और संजीव पास बुक में छाप भी दिए। "इस्लामी आतंकवाद से आप क्या समझते हैं?" प्रश्न के उत्तर में सीधे ही लिख डाला कि इस्लामी आतंकवाद इस्लाम का ही एक रूप है और भी बहुत कुछ लिखा, जो वाकई आपत्तिजनक है। इतना आपत्तिभरा है कि विरोध होना स्वाभाविक है। कार्यवाही भी ठोस होनी चाहिए।
संजीव प्रकाशन के प्रदीप मित्तल शहर के लिए एक जाना—माना नाम है। राजनैताओं, मीडिया, प्रशासन व व्यापार मंडल से संबंध भी अच्छे हैं। अब देखना यह है कि पुलिस कितनी ठोस कार्यवाही अमल में लाती है?
-तनवीर खान,वरिष्ठ पत्रकार की फेसबुक वॉल से साभार
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