हाल ही में राजस्थान सरकार ने औषधीय पौधों के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिये “घर-घर औषधि योजना” की घोषणा किया है| इसके अंतर्गत ...
हाल ही में राजस्थान सरकार ने औषधीय पौधों के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिये “घर-घर औषधि योजना” की घोषणा किया है| इसके अंतर्गत तुलसी, गिलोय, अश्वगंधा और कालमेघ जैसे पौधे वन विभाग की पौधशालाओं में उगाने और इन्हें लोगों को अपने घर में जाने के लिये प्रोत्साहित किया जायेगा| यह अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रमाण-आधारित कदम है| आज गुडूची या गिलोय (टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया) की बहुआयामी उपयोगिता का वैज्ञानिक विश्लेषण है| गुडूची को आब-ए-हयात के नाम से भी जाना जाता है|
औषधि के रूप में गुडूची के बारे में उपलब्ध प्रमाणों को तीन तरह से देखा जा सकता है| एक तरफ स्थानीय आदिवासियों द्वारा स्थानीय ज्ञान का प्रयोग कर विभिन्न प्रकार के रोगों के विरुद्ध गुडुची का प्रयोग पूरे देश में वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं द्वारा एथनोमेडिसिनल या लोक-औषधीय जानकारी प्रकाशित की गयी है| दूसरी तरफ आयुर्वेद की संहिताओं में गुडूची को विभिन्न रोगों के विरुद्ध प्रभावी होने की जानकारी अंकित है| इसके साथ ही आधुनिक वैज्ञानिक शोध की विधियों -इन सिलिको, इन वाइट्रो, इन वाइवो एवं क्लिनिकल ट्रायल्स – में भी गुडूची की विभिन्न रोगों के विरुद्ध क्रियात्मकता सिद्ध हुई है| हाल ही में एक डॉकिंग अध्ययन में गुडूची में पाये जाने वाले अनेक द्रव्यों में से 27 की जांच करने पर पाया गया कि टिनोकॉर्डिसाइड की बाइंडिंग एनर्जी 8.10 केकैल/मोल. है| इस प्रकार यह कोविड-19 के विरुद्ध मज़बूत औषधि हो सकती है| अभी तक गुडूची के कोविड-19 के सन्दर्भ में 122 शोधपत्र प्रकाशित हो चुके हैं|
अनुभवजन्य प्रमाण तथा प्रीक्लिनिकल अध्ययन स्पष्ट करते हैं गुडुची, अश्वगंधा, आमलकी आदि रसायन द्रव्य बी और टी सेल के प्रसार, एन.के. सेल को सक्रिय करने, टीएच1 के सेलेक्टिव अपरेगुलेशन, सीडी4+ व सीडी8+ की संख्या में वृद्धि करने, और आईएल-1बी और आईएल-6 में कमी लाने में मदद करती हैं| इस प्रकार ये सब नॉन-स्पेसिफिक इम्यूनिटी को मजबूत करने और संक्रमण को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं (देखें, बी. पटवर्धन, आर. सरवाल, जर्नल ऑफ़ आयुर्वेदा एंड इंटीग्रेटिव मेडिसिन, 12(2), 227-228, 2021)। देश के अनेक अस्पतालों में चल रहे क्लिनिकल ट्रायल्स के परिणाम भी उत्साहजनक और प्रभावी रहे हैं और शीघ्र ही प्रकाशित होने वाले हैं|
आयुर्वेद की संहिताओं में उपलब्ध जानकारी की बात करते हैं| उम्र को रोके रहने वाले या वयःस्थापक द्रव्यों में गुडूची शामिल है| इस वर्ग की अन्य प्रजातियाँ हरीतकी, आँवला, रास्ना, अपराजिता, जीवन्ती, अतिरसा (शतावरी), मंडूकपर्णी, शालपर्णी, व पुनर्नवा हैं (च.सू.4.18): अमृताऽभयाधात्रीमुक्ताश्वेताजीवन्त्यतिरसामण्डूकपर्णीस्थिरापुनर्नवा इति दशेमानि वयःस्थापनानि भवन्ति| इसके अतिरिक्त एकल या अकेली गुडूची का भी अनेक बीमारियों के विरुद्ध प्रयोग किया जाता है| आचार्य भावमिश्र ने स्पष्ट किया है कि गुडूची कटु, तिक्त, कषाय रस युक्त, लघु, उष्ण है| यह बल्य, रसायन, अग्निदीपक और त्रिदोषशामक है (भा.प्र.पू.ख. गुडुच्यादिवर्ग 6.8-10): गुडूची कटुका तिक्ता स्वादुपाका रसायनी। संग्राहिणी कषायोष्णा लघ्वी बल्याऽग्निदीपिनी।। दोष त्रयामतृड्दाहमेहकासांश्च पाण्डुताम्। कामला कुष्ठवातास्त्रज्वरक्रिमिवमीन्हरेत।। प्रमेहश्वासकासार्शः कृच्छ्रहृद्रोगवातनुत्|
आयुर्वेद की प्रमुख संहिताओं में 178 ऐसे जीवनदायी योग हैं जिनमें गुडूची प्रमुखता से प्रयुक्त होती है और शायद ही ऐसा कोई रोग हो जो इन योगों से न सम्हलता हो| गुडूची के मिश्रण वाले योगों का उपयोग टाइफाइड, नर्वस सिस्टम के रोग, तमाम तरह के टॉक्सिक और सेप्टिक बुखार, वातज, पित्तज और कफज ज्वर, रक्तस्राव, गठिया, गाउट, रूमेटिज्म, ऐसे बुखार जिनमें प्राय रक्त स्राव हो जाता है, उल्टी, जलन, दाह, मोटापा, अम्ल और पित्त बढ़ने के कारण होने वाली उल्टियां, चमड़ी के अनेक तरह के रोग, अल्सर, शोथ, यूरिनरी ट्रैक्ट से जुड़े रोग, फाइलेरियासिस, एंजाइना और वातज शूल, पित्तश्लेष्मिक ज्वर, वृष्य और वाजीकरण, याददाश्त बढ़ाना, आंखों और आंख से जुड़े तमाम रोग, उम्र बढ़ने को रोकना, बालों का पकना रोकना, बौद्धिक क्षमता बढ़ाना, शरीर का नवीनीकरण करना, फिस्टुला इन एनो सहित गुदा के तमाम रोग, अनेक प्रकार के कुष्ठ, ज्वाइंडिस, राइनाइटिस, साइनस, स्प्लीन का बढ़ना, जोड़ों का दर्द, ट्यूमर, एनीमिया, प्लीहा का बढ़ना, अग्नि को सम करना, बलवृद्धि, मनोविभ्रम की स्थिति ठीक करना, मिर्गी, विभिन्न वात विकार, जननांगों से जुड़ी हुई समस्यायें, सर्वाइकल लिम्फोडिनोमा, योनि-रोग ठीक करना, दीर्घायु-प्राप्ति, शरीर को कांतिवान बनाना, सियाटिका सहित कमर, पैरों और जांघों का दर्द, डिसपेप्सिया, सिरदर्द, माइग्रेन, दांत का दर्द जैसे अनेक चिकित्सकीय परिस्थितियों में होता है।
आयुर्वेद की एंटीवायरल औषधियां, जिनमें गुडूची भी शामिल है, पर इन वाइवो, इन वाइट्रो, और क्लिनिकल अध्ययन हो चुके हैं| ये तमाम प्रकार के वायरल रोगों से बचे रहने के लिये मददगार हैं| कालमेघ, तुलसी, गुडूची, अश्वगंधा, चिरायता, शुंठी, वासा, शिग्रू या सहजन, कालीमिर्च, पिप्पली, हरिद्रा, यष्टिमधु, बिभीतकी, आमलकी, हरीतकी, मुस्ता, पाठा, पुनर्नवा, लहसुन, शरपुन्खा, कुटज, शल्लकी, पुदीना, त्रिकटु, त्रिफला आदि शोध में एंटीवायरल सिद्ध हो चुके हैं| बड़ी संख्या में वैद्यों का प्रैक्टिस-बेस्ड एविडेंस या चिकित्सा-आधारित प्रमाण स्पष्ट करता है एकल औषधि के रूप में या इन औषधियों के मिश्रण से बने गुडूची के योग तमाम वायरल बुखारों में उपयोगी हैं|
इसके अलावा और भी क्लिनिकल शोध हैं जिनमें गुडूची को उपयोगी पाया गया है| कुछ उदाहरण देखते हैं| कम मात्रा में भी दारू पीने से पुरुषों में सेक्स हार्मोन को होने वाले नुकसान को रोकने में आयुर्वेदिक औषधि गुडूची सहायक है| दारू पीने से बर्बाद मेटाबोलिज्म को ठीक करने में गुडूची सहायक हो सकती है| यकृत को भी ठीक करती है| गुडूची द्वारा बीटा-सेल्स के रिजेनेरेशन की संभावना भी पायी है| डायबिटीज के उपचार की दिशा में एक और प्रमाण यह है कि गुडूची पैन्क्रेआटिक बीटा सेल्स का संरक्षण कर ग्लूकोज चयापचय को नियंत्रित करती है| शुंठी व गुडूची के संयोजन से बना योग 16 प्रकार के जींस व 27 प्रकार के कैन्सर्स को विनियमित करता है। कंकालीय-मांसपेशी से संबंधित विकार आज एक बड़ी समस्या है जो केचेक्सिया, सारकोपीनिया व इम्मोबिलाइजेशन के कारण उत्पन्न होती है। इस समस्या को हल करने में गुडूची उपयोगी पायी गयी है| बच्चों को रोज रोज के इन्फेक्शन से छुटकारा मिल सकता है क्योंकि गुडूची बच्चों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है| क्लिनिकल ट्रायल में आमलकी व गुडूची मुख-कैंसर के उपचार में लाभकारी पायी गयीं हैं| गुडूची में क्लिनिकल ट्रायल से यह भी ज्ञात होता है कि यह एलर्जिक रायनाइटिस, जुकाम, बुखार ठीक करने और व्याधिक्षमत्व बढ़ाने में उपयोगी है|
कोविड-19 के विरुद्ध गुडुची की प्रभाविता जाँचने के लिये भारत में अनेक क्लिनिकल ट्रायल्स चल रहे हैं| वस्तुतः गुडूची के पूर्व से सिद्ध एंटीपायरेटिक, एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीऑक्सिडेंट, एंटी-इंफेक्टिव, एंटी-नियोप्लास्टिक और इम्यूनो-मॉड्यूलेटरी प्रभाव कोविड-19 के संदर्भ में महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। क्लिनिकल ट्रायल्स रजिस्ट्री ऑफ़ इंडिया में कोविड-19 से बचाव हेतु स्वस्थ किन्तु उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों में गुडूची की भूमिका का परीक्षण करने के लिये एकल औषधि के रूप में गुडूची पर सात क्लिनिकल ट्रायल्स पंजीकृत हैं। इनमें से चार बड़े परीक्षण हैं जिनमें नमूना-आकार 5000 से 40,000 व्यक्ति तक है और पूरे भारत में 20 स्थानों पर ये ट्रायल्स चल रहे हैं। इसके अलावा गुडूची के अन्य द्रव्यों के साथ संयोजन से निर्मित औषधियों पर तीन अन्य क्लिनिकल ट्रायल्स भी चल हैं। इनमें से एक दिल्ली में 50,000 पुलिस कर्मियों पर किया जा रहा है (देखें, एम.वी.वी. राव इत्यादि, इंडियन जर्नल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च, 153(1), 26-63, 2021)।
इनमें एक उदाहरण मेदांता अस्पताल, गुरुग्राम में हुये 60 लोगों के मध्य अध्ययन का है। इस अध्ययन में 30 कोविड-19 रोगियों में मानक देखभाल और 30 को मानक देखभाल के साथ ही आयुर्वेद की चिकित्सा (गुडूची और पिप्पली) भी जोड़ी गयी। परिणाम में पाया गया कि आयुर्वेद ऐड-ऑन समूह में कोई रोगी कोविड-19 की खतरनाक अवस्था में नहीं गया। न केवल सब बच गये बल्कि सभी 6 दिन के भीतर कोविड-19 से मुक्त होकर नेगेटिव हो गये। जबकि नियंत्रण समूह में केवल 40 प्रतिशत रोगी ही इस अवधि में कोविड-19 से मुक्त हो पाये। नियंत्रण समूह की तुलना में आयुर्वेद ऐड-ऑन ग्रुप में मरीजों के अस्पताल में रहने की अवधि भी कम रही। आयुर्वेद की औषधियों का कोई दुष्प्रभाव भी नहीं देखा गया। इस क्लिनिकल ट्रायल के परिणाम शीघ्र प्रकाशित होने वाले हैं।
एक क्लिनिकल ट्रायल जिसमें गुडूची, अश्वगंधा और तुलसी भी महत्वपूर्ण औषधि के रूप में सम्मिलित रही हैं, प्रकाशित हो चुका है| यह क्लिनिकल ट्रायल कोविड-19 के 100 मरीजों पर हुआ और यह पाया गया कि तीसरे दिन जहाँ आयुर्वेद उपचार ग्रुप में 71.1 प्रतिशत मरीज ठीक हुये, वहीं प्लेसीबो समूह में और 50 प्रतिशत रोगी ठीक हुये। आयुर्वेद उपचार समूह में 7 दिन के अन्दर 100 प्रतिशत रोगी ठीक हुये, जबकि प्लेसीबो समूह में यह 60 प्रतिशत था। उपचार के सातवें दिन प्लेसीबो समूह की तुलना में उपचार समूह में एचएस-सीआरपी, इंटरल्यूकिन-6 और टीएनएफ-अल्फा के सीरम स्तरों में औसतन क्रमशः 12.4, 2.5 और 20 गुना कमी थी। उपचार समूह में संक्रमण से उबरने के जोखिम में भी 40 प्रतिशत कमी पायी गयी (देखें, जी. देवपुरा इत्यादि, फाइटोमेडिसिन, 84: आर्ट. 153494, 2021)।
एक क्लिनिकल केस-स्टडी के अनुसार कोल्डकैल, त्विषाअमृत, अश्वगंधा, गुडूची तथा संजीवनी वटी कोविड-19 के उपचार में पूर्ण प्रभावी पायी गयी हैं| कोल्डकैल में मूल द्रव्य तुलसी, गुडूची व कालमेघ हैं| त्विषाअमृत में 13 प्रजातियों के औषधीय पौधे शामिल हैं (देखें, संजीव रस्तोगी, रंजना रस्तोगी, अतुल खरबंदा, जर्नल ऑफ़ आयुर्वेदा एंड इंटीग्रेटिव मेडिसिन, 25 फरवरी, 2021)|
एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि यदि ज्ञान के उत्पादन की सभी विधियां एक ही दिशा में संकेत करती हैं तो ऐसे प्रमाण को आप निर्विवाद प्रमाण मान सकते हैं, जब तक कि ऐसे प्रमाण के विरुद्ध कोई अन्य अध्ययन ऐसे प्रमाण को रद्द न करता हो| यहां पर लोक-औषधि विज्ञान या एथनोमेडिसिन, आयुर्वेद, वैद्यों के अनुभव और आधुनिक शोध को साथ में देखने पर गुडूची को परम उपयोगी औषधि मानने के उचित, पर्याप्त और निर्विवाद प्रमाण उपलब्ध हैं|
इन तमाम कारणों से घर-घर औषधि योजना में शामिल किये गये गुडूची, कालमेघ, अश्वगंधा और तुलसी जैसे उपयोगी पौधे घर, आँगन, खेत-खलिहान जहाँ भी जगह मिले, अवश्य लगाना चाहिये| जरूरत पड़ने पर दर-दर नहीं भटकना पड़ेगा| ध्यान दीजिये वैद्य और उनका ज्ञान तो मिल जायेगा पर यदि इन पौधों को नहीं उगाया गया तो दवा मिलना मुश्किल हो सकता है| “घर-घर औषधि योजना” एक परम कल्याणकारी कदम है, और यह तभी सफल हो सकती है जब इसमें शामिल होने के लिये प्रत्येक परिवार आगे आकर औषधीय पौधों को उगाने हेतु स्वयं निवेश करेंगे| सदैव की भांति यहाँ भी यह ध्यान देना चाहिये कि औषधि वैद्यों की सलाह से ही लेना उपयुक्त और सुरक्षित होता है|
डॉ. दीप नारायण पाण्डेय
(इंडियन फारेस्ट सर्विस में वरिष्ठ अधिकारी)
(यह लेखक के निजी विचार हैं और ‘सार्वभौमिक कल्याण के सिद्धांत’ से प्रेरित हैं|)
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