जयपुर। मानव कुष्ठ आश्रम घाट की गुणी में आज जर्मनी की थिया कोसे मुकली के लिए प्रार्थना सभा मैं अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि दी गई। मुकली के लिए...
जयपुर। मानव कुष्ठ आश्रम घाट की गुणी में आज जर्मनी की थिया कोसे मुकली के लिए प्रार्थना सभा मैं अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि दी गई। मुकली के लिए हर साल फरवरी का महीना खास होता था। हर साल भारत में अपना समय स्पेशल वैलेंटाइन के साथ बिताती थी। थिया के वैलेंटाइनस हैं - भारत के कुष्ठबाधित लोग, जिनसे मिलने वह विशेष रूप से यहाँ विगत 35 वर्षों से आ रही थी। भारत की संस्कृति, प्यार, आदर सत्कार ने थिया को इतना प्रभावित किया कि इतने लम्बे समय से वह यहाँ निरंतर आती रही। थिया के जुड़ाव का हिस्सा बने यहाँ के कुष्ठबाधित लोग।
लेप्रोसी के लिए अपने काम की शुरुआत करने के बारे में थिया कहती थी की वर्ष 1989 में जर्मनी में सिनेमा हाल में मूवी देख रही थी। वो मूवी लेप्रोसी पर आधारित थी। जिसे देख कर वह बहुत भावुक हो गई और मन में लेप्रोसी से पीड़ित लोगों के लिए कुछ बेहतर करने की ठान ली। इसके बाद उसने अनवरत यह सेवा कार्य जारी रखा। भारत को लेप्रोसी फ्री बनाना ही थिया का लक्ष्य रहा।
जयपुर के सार्थक मानव कुष्ठाश्रम को अपनी कर्मस्थली बना कर उसने राजस्थान के साथ साथ अन्य प्रदेश के कुष्ठबाधित लोगों के लिए हर संभव मदद उनके जीवन को सुखमय बनाने के लिए करती रही। उन्हें राजस्थान के कुष्ठबाधितों की मशीहा एवं वैलेंटाइन कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगा। उनका यह सेवा कार्य किसी साधना से कम नहीं है। उन्होंने इस सेवा कार्य के लिए जर्मनी में एक संस्था - "लेबेन ओहने लेप्रा" का गठन किया, जिसका अर्थ है "लाइफ विदाउट लेप्रोसी" का उदेश्य यही है कि समाज से खासतौर से भारत से लेप्रोसी को पूरी तरह ख़त्म करना।
ऐसी महान समाज सेविका ने अभी हाल ही सभी कुष्ठबाधितों को सदा- सदा के लिए अलविदा कह दिया। सार्थक मानव कुष्ठाश्रम के अध्यक्ष सुरेश कौल अपने संस्मरण साझा करते हुए बताते हैं कि "कोई 35 वर्ष पूर्व थिया कोसे मुकली अपने मित्रों के साथ सार्थक मानव कुष्ठाश्रम जिसे गलता आश्रम के नाम से जाना जाता है, में आई थी, उसके बाद गलता आश्रम सदा- सदा के लिए उसकी आत्मा में बस गया। सही अर्थों में वह कभी भी मन से वापिस जर्मनी गई ही नहीं। उस जैसी विदुषी, धर्मपरायण, कुष्ठबाधितों एवं दिव्यांग व्यक्तियों की सच्ची हितेषी, मृदुभाषी, निर्मल ह्रदय वाली सेवाभावी विभूति के लिए कितना भी कहो कम ही होगा। सही मायने में वह आश्रम वासियों की मां थी।"
उस महान सख्शियत को आज जयपुर शहर के सभी कुष्ठबाधितों, इस सेवा कार्य से जुड़े लोगों एवं अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने सार्थक मानव कुष्ठाश्रम प्रांगण में पुष्पांजलि अर्पित कर याद किया एवं अपनी सच्ची श्रद्धांजलि दी।
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